गुरुवार, 30 अप्रैल 2009

वह रे मेरे देश ! अपराधी को भी आरक्षण !!

नमस्कार मित्रो,

आज सुबह सुबह जब दैनिक भास्कर पढ़ रहा था , तो अन्दर के पृष्ठ पर एक छोटी सी मगर चौका देने वाली ख़बर पढ़ी। जबलपुर हाई कोर्ट ने एक बलात्कार के आरोपी की १० वर्ष की सजा सिर्फ़ इसलिए कम कर दी क्योंकि आरोपी एक अनपढ़ और अनुसूचित जनजाति का था। गनीमत है की पीड़ित पक्ष सर्वोच्च न्यायलय की शरण में गया। सुप्रीम कौर्ट ने पीड़ित पक्ष को रहत देते हुए आरोपी की सजा बरक़रार राखी है।

धन्य है मेरे देश के लोग जो हर चीज को आरक्षण से जोड़ते है। सोचिये ! अगर अपराधियों को भी आरक्षण मिलने लगा तो देश का क्या हाल होगा ? आरक्षण के मामले को मैं सिर्फ़ इसलिए नही उठा रहा हूँ क्योंकि मैं सवर्ण या उच्च जाति से सम्बंधित हूँ। मैं आरक्षण के खिलाफ नही हूँ , बस तरीका गलत है। आरक्षण हो मगर जाति के आधार पर नही , बल्कि आर्थिक आधार पर होना चाहिए। इस बात को देश के कई जाने माने लोगो ने भी कहा है। नारायण मूर्ति (infosys) ने तो इस बात का प्रयोग सहित पुरजोर समर्थन किया है। हमारे देश के नेताओ को तो अपने वोट बैंक से मतलब है, मगर हम तो आज समझदार है । हम देख चुके है की आरक्षण के नाम पर एश का कितना नुक्सान हो चुका है । चाहे वो वी० पी० सिंह का मंडल कमंडल हो या अर्जुन सिंह का नया शिगूफा या फ़िर गुर्जरों का आन्दोलन । हमने कितना खोया कितना पाया है ?

अगर आप वंचितों को आरक्षण न देकर समुचित सुविधाए उपलब्ध कराते है तो शायद उन लोगो के साथ- साथ देश का भी भला हो सकता है। देश की आज़ादी के ६ धसक बाद भी दलित, मुस्लिम , आदिवासी पिछडे है ! क्यो नही वे आगे बढ़ पाए ? क्या हम फ़िर से नही सोच सकते की आख़िर कान्हा कमी है? आख़िर हम इस आरक्षण की ग़लत नीति के कारण उच्च जातियों को आरक्षित जातियों का दुश्मन नही बना रहे है ? आख़िर हम प्रतिभाओ का गला नही घोंट रहे है ?

कभी किसी पत्रिका में एक आरक्षण पढ़ी थी --

घोडो और गधो में हो रही थी रेस

अश्व थे आगे ,

गधे भी पीछे भागे ।

इतने में किसी ने लगाम खीची ,

अब गधे थे आगे और घोडे हुए पीछे ,

लगाम खीचने वाला कौन है ?

मेरे देश की संसद मौन है !

आरक्षण ! आरक्षण !!

ज़रा सोचे

आपका अपना ही मुकेश पाण्डेय

सोमवार, 27 अप्रैल 2009

एल फॉर ...

kअविता: - एल फॉर

एक दिन मैं सड़क से जा रहा था।
मन में कुछ गुनगुना रहा था ।
इतने में एक सरकारी स्कूल मिला।
सोचा , चलो चलाये टाइम पास का सिलसिला
टीचर अंग्रेजी यूँ पढा रहे थे ,
मनो अंग्रेजी की धज्जिया उड़ा रहे थे।
बोले बच्चो होता है एल फॉर लालटेन
ये सुन मैं हो गया बैचैन
मैंने कहा एल फॉर लाइट के ज़माने में लालटेन पढा रहे हो,
क्या कंप्यूटर युग में भी टाईपराइटर चला रहे हो ।
टीचर बोले - एल फॉर लाइट ही नहीं रहेगी तो कंप्यूटर कंहा से चलेगा ?
जब तक होगी विद्धुत कटौती तब तक हर बच्चा एल फॉर लालटेन ही पढेगा ।
मुकेश पांडे "chandan"

अथ श्री जूता पुराण

नाम्सस्कार दोस्तों,
पंडित श्री १००८ मुकेश पांडे जी महराज के श्री मुख से जूता पुराण वाचन आरम्भ होता है।
मतदाता आचार्य श्री चुनाव चिन्तक महराज से पूछते है - महराज ये जूते में ऐसी कौन सी अद्भुत शक्ति है जो इसे इस घोर कलयुग में भी इतना लोकप्रिय बना रही है? इसकी लोकप्रियता तोह बड़े बड़े नेताओ को भी पीछे छोड़ रही है ।
महराज- वत्स ! इस जूते को तुम मामूली मत समझो ये बड़ा ही करामाती है !
मतदाता - वो कैसे ?
महराज- इसकी बहुत पुराणी कथा है प्रिये लोकतंत्र के प्यादे ! ये जूता प्राचीन काल में चरण पादुका कहलाता था । इसी के सहारे अयोध्या के रजा दशरथ के पुत्र भरत ने चौदह वर्ष काटे।
मतदाता- समझा नही प्रभु ?
महराज - भोले भले भारत के शोषित मतदाता, अरे अपने बड़े भाई राम के वन्बस जाने के बाद भरत ने राम की चरण पादुकाओ को राजसिंहासन पर रख कर उनकी पूजा की। और आज इन्ही पादुकाओ से राजनेताओ की पूजा की जा रही है।
मतदाता- प्रभु ! वर्तमान में जूते की गाथा सुनाये ।
महराज - सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े दयनीय प्राणी ! ये जूता बड़ा ही तेज अस्त्र- शास्त्र है।
मतदाता - महराज ! ये अस्त्र शास्त्र क्या होता है , जरा विस्तारित करे ।
महराज - देखो मूढ़मति मतदाता ! अस्त्र - वो हथियार जिसे फेक कर मारा जाए । और शास्त्र वो हथियार जिसका उपयोग हाथ में लेकर किया जाए ।
मतदाता- यानि महराज ये जूता का तो दोनों तरह से इस्तेमाल किया जा सकता ही।
महराज- बिल्कुल सही कहा मेरे मंदबुद्धि मतदाता ! मगर इस आम चुनाव में इसका सिर्फ़ शास्त्र की तरह ही उपयोग हो पाया है ।
आगे आधुनिक कल की कथा सुने: - आधुनिक काल में इसका सर्वप्रथम उपयोग इराक के पत्रकार जैदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति बुश पर किय, फ़िर ब्रिटेन में वह के लोगो ने चीन के प्र० म० इस महा प्रभावी हथियार का प्रयोग किया। भरत में इस का प्रथम प्रोयोग एक पत्रकार ने ही किया। जनरैल सिंह ने ग्र्सः मंत्री चिदम्वरम पे अपना जूता फेका, फ़िर इसके बाद इसके शिकार बने लोगो में नवीन जिंदल , लाल कृष्ण अडवानी , अभिनेता जीतेन्द्र, प्र० म० मनमोहन सिंह आदि आदि
वत्स ये परम्परा बहुत ही घटक है । इसका प्रयोग लोकतंत्र के साथ साथ सभी समाज के लिए भी घातक है । इश्वर हमारे कुकर्मी नेताओ को सद्बुधी दे ताकि उन्हें जूते न मिले।
आईटीआई श्री जूता पुराण समाप्त ..

रविवार, 26 अप्रैल 2009

परिचय ; बुंदेलखंड

दोस्तों ,
बुंदेलखंड एक भाषाई क्षेत्र है । जो दो राज्यों के कुछ जिलो में फैला हुआ है । म० प्र० के सागर , दमोह , छतरपुर, टीकमगढ़ , पन्ना , दतिया, गुना, नरसिंगपुर जिले तो उ० प्र० के झाँसी, ललितपुर , महोबा, उरई , जालौन, आदि जिलों में विस्तृत है । बुंदेलखंड नाम जो प्राकृतिक रूप में एक पत्थर ही लेकिन हम भाषाई बुंदेलखंड की बात कर रहे है वो कुछ भाग विंध्यांचल की खूबसूरत पहाडियों के बीच बसाहुआ है । इन पहाडियों से अनेक छोटी बड़ी नदिया निकलती है । जिनमे प्रनुख रूप से - बेतवा , केन, सोनार, धसान , बीना , बेबस आदि है । बेतवा नदी के किनारे विश्व प्रसिद्द स्थल "ओरछा " स्थित है । ओरछा में रामराजा का मंदिर जगत विख्यात है । कहते है की यंहा जो मूर्ती है वह ओरछा की महरानी अपने सपने के आधार पर खुद अयोध्या से लाई थी । विश्व में सिर्फ यंही भगवान् राम रजा के रूप में पूजे जाते है ।
छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो के मंदिर भी विश्वविख्यात है , अपनी अद्भुत शिल्प के लिए विख्यात इन मंदिर समूहों का निर्माण ९ वी सदी से १० वी सदी में चंदेल वंश के राजाओ ने करवाया था। यंहा के मंदिरों की बाहरी दीवारों पर बहुत ही सुन्दर ढंग से सती - पुरुष और देवी देवताओ के कामुक रूप में आकृतियाँ उकेरी गस्यी है । इनका शिल्प देखते ही बँटा है । इन मंदिर समूहों में हिन्दू और जैन धर्मं के मंदिर है । सबसे बड़ा मंदिर कंदरिया महादेव का मंदिर है । ।
ओउद्यिगिक रूप से पिछडे इस क्षेत्र में हाल ही में सागर जिले के बीना जंक्शन के पास आगासौद में तेल रिफानरी लगाई गयी है। सागर में स्थित हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय जो म०प्र० का सबसे पुराना और बड़ा विश्वविद्यालय है , अब केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में परिणित किया गया है । इस विश्वविद्यालय की स्थापना प्रसिद्द वकील , संविधानविद और मनीषी डॉ हरी सिंह गौर ने १८ जुलाई १९४६ में की थी । ये एक ही व्यक्ति के दान से बना विश्वा का एकलौता उद्धरण है । आज ये अपनी शिक्षा के के कारन देश विदेश में विख्यात है । आचार्य रजनीश ओशो , अशोक वाजपेयी जैसे विद्यार्थियों को देने वाला विश्वविद्यालय आज भी अपनी परंपरा को जीवित किये हुए है।
सागर जिले में ही गुप्त कालीन स्थल airan है, जिसने गुप्त वंश की अनेक गुथियो को सुलझाया है। यहाँ मिली वराह प्रतिमा प्राचीन भारतीय इतिहास की अनमोल धरोहर है। airan से hee ५ वी सदी के abhilekh mile है जिनमे satee pratha का ullekh है । ये bahrat में satee prathaa के सबसे purane pramaan है।
mitro iske alawa भी bhut कुछ है है बुंदेलखंड में जो kisi को भी aakarshit कर sake , जैसे janshi की rani । नाम तो sunaa ही hoga haan bhai wahi jise subhadra kumaari chaohaan ने kaha है -
khoob ladi mardni थी, वो झाँसी wali rani थी .

शनिवार, 25 अप्रैल 2009

प्रचार का तरीका !

दोस्तों,
सलाम नमस्ते ,
एक बार दो पुराने दोस्त एक ही जगह से दो अलग अलग पार्टी से चुनाव लड़े। संता को कांग्रेस ने टिकट दिया और बनता को भाजपा ने । दोनों जम के प्रचार करने लगे । एक दिन दोनों की मुलाकात एक होटल में दोपहर के समय हो गयी। दोनों अपने अपने समर्थको के साथ खाना खाने आए थे । दुआ सलाम के बाद दोनों ने एक दुसरे का हल हल पूछा ।
संता- क्यो भाई कैसे कर रहे हो प्रचार?
बनता- बस भाई कुच्छ खास नही , जैसे इस होटल में खाना खाने आया हूँ तो खाने के बाद होटल के खाने की जम की तारीफ करूँगा फ़िर बिल से ज्यादा पैसा चुकाऊंगा , बेतार को भी ज्यादा टिप दूंगा और आखिर में कहूँगा , भाई वोट भाजपा को देना ।
और तुम किस तरह अपना प्रहार कर रहे हो भाई ?
संता - बस कुछ तुम्हारी ही तरह है । जिसे मैं भी तुम्हारी तरह होटल में खाना खाने जाता हु । खाना खाने के बाद होटल और बेतार दोनों को जम के कोसता हूँ । सौ दो सौ गलिया देता हूँ । फ़िर हाथ जोड़ के कहता हूँ भाई सब वोट भाजपा ही को देना । !!

वाह रे लोकतंत्र ! कितने जूते ! कितने षद्यन्त्र

नमस्कार दोस्तों ,
आजकल दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव यानि आम चुनाव की दौर है । परन्तु धन्य है भारत भाग्य बिधाता ! इस चुनाव में कोई मुद्दा ही नही है । कही जूता चल रहा है , तो कही चप्पल ! बड़े बड़े नामधारी नेता अपने विचार की जगह व्यभिच्चार पर तरजीह दे रहे है । बिपक्ष प्रधान मंत्री को कमजोर बता रहा है तो सत्ता पक्ष कंधार मामले के पीछे पड़ा है । कोई किसी के ऊपर रोड रोलर चलवा रहा है तो कोई किसी को पप्पी दे रहा है । अब न तो कोई नारा है और न ही कोई नेता । नारे की बात करे तो एक पार्टी अपने परिवार वाद की जे हो कर रही है । तो दूसरी पार्टी को जूतों की भय हो । मुद्दे तो गायब ही है बस एक दुसरे पर कीहद उछाले जा रहे है । किसी को देश की फिक्र है ही नही । आम चुनाव में आम आदमी तो बस चुनावी पोस्टर में ही बचा है । आम आदमी के मुद्दे तो गायब ही है , कौन ध्यान दे रही महगांई , भ्रष्टाचार , सड़क , पानी , शिक्षा पर ? एक पार्टी ने तो यंहा तक कह दिया अपने घोषणापत्र में की अगर हम सत्ता में आए तो कंप्यूटर , अंग्रेजी शिक्षा पर रोक लगा देंगे । धन्य है भारत माँ के लाल ! अब आपको सोंचना है की आप किसे चुनते है अपने देश के लिए ? मेरा कहना है की आप अपना वोट जरुर दे मगर सोंच समझ कर । शुक्रिया !!

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...